मम्मी, मुझे कलर बॉक्स चाहिए

लोग कहते हैं कि पैसे वालों को नींद नहीं आती है लेकिन पैसे न हों तो भी नींद नहीं आती है, आते हैं तो विचार, कुछ सही कुछ गलत, छीनने के, चुराने के, कमाने के, मांगने के और न जाने आते हैं कितने विचार?

कक्षा चार में पढ़ने वाले यश को उसके मामा इसलिए पीट रहे थे कि उसने आज घर के सामने वाले मंदिर से दस-बारह रुपए चुरा लिए थे और उस पैसे से दस रुपए का कलर और दो रुपए की टॉफी खरीद ली थी। यश की उम्र अभी बारह साल ही होगी, लेकिन मारते वक्त उसके मामा उसकी उम्र न देखकर चोरी देखते हैं और इतना मारते हैं कि उसके बाएं हाथ की हड्डी टूट जाती है। यश की मां एक फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती हैं और महीने के छः हजार रुपए कमा लेती हैं। यश की मां कहती हैं कि वो(यश के पिता) पक्के नशेड़ी हैं। यश के पापा और मम्मी में अक्सर लड़ाई झगड़े होने के कारण यश के पिता के घरवालों ने उनकी मां को मायके भेज दिया था और मायके में गांव वालों के तंज से बचने और रोजी रोटी की तलाश में भाई के साथ यश की मम्मी शहर चली जाती हैं। मां के साथ यश और उससे दो साल बड़ा भाई आयूष हरिद्वार में एक किराए के कमरे में रहते हैं। पैसे न होने और कोई नौकरी न होने के कारण पिछले साल यश और आयूष स्कूल नहीं गए थे लेकिन इस बार उनकी मम्मी ने स्कूल भेजने के लिए एडमिशन करवा दिया है।

यश की मम्मी सुबह 8 बजे काम पर चली जाती हैं और शाम को सात बजे तक वापस आती हैं, इस बीच यश और आयूष खाना बनाना, कपड़े धोना, झाड़ू लगाना... ये सारे काम करके स्कूल जाते हैं और शाम को स्कूल से आने के बाद भी मम्मी और मामा के लिए खाना बनाते हैं।

यश अपनी मम्मी से पिछले तीन दिन से कलर बॉक्स खरीदने को कह रहा था लेकिन अभी तक पाया नहीं था, मम्मी ने ये कहकर मना कर दिया था कि जब पैसा आएगा तो खरीदूंगी। जब शाम को यश की मम्मी आती हैं तो पूंछती हैं कि 'यशवा काहे चोरी किया था', यश डर के मारे मम्मी से ये भी नहीं बता पाता है कि उसके लिए मामा ने मारा है और उसका हाथ दर्द कर रहा है अगले दिन जब हाथ सूज आता है तो मामा पास के सरकारी अस्पताल में ले जाते हैं और वहां एक्स रे के बाद पता चलता है कि हाथ टूट गया है।शाम को जब मम्मी आती हैं तो हाथ में प्लास्टर बंधा देख फिर पूछती हैं कि ये कैसे हुआ और इस बार यश रो पड़ता है, और सारी बातें मम्मी को बताता है।

यश की तरह देश में लाखों बच्चे ऐसे होंगे जिनके पास स्कूल जाने के लिए बुनियादी सुविधाएं जैसे की बैग, ड्रेस, किताब, टिफिन, फीस नहीं हैं और अगर सरकार इन सब चीजों को सरकारी स्कूल में उपलब्ध भी कराती है तो सरकारी मास्टरों की भ्रष्टाचारी जरूरतमंदों तक पहुंचने नहीं देती है। समाज में रहने का मतलब यह भी है कि साथ दिया जाए, अगली बार आप भी ऐसे बच्चों को देखें तो जरूर मदद करें, विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प केवल सरकार का नहीं है इसमें जनभागीदारी भी जरूरी है।

उसी रात को खाना खाने के बाद सब सो जाते हैं लेकिन रात के करीब दो बजे भी यश की मम्मी जग रही हैं और ये सोच रही हैं कि अगर दस रुपए यश को दे दिया होता तो ये सब न होता। बात वही आती है पैसे न हों तो भी नींद नहीं आती है मेरे यार, आते हैं तो विचार कुछ सही, कुछ गलत।

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